एक फूल की चाह
सियारामशरणगुप्त
第3部分
पापी ने मंदिर में घुसकर
किया अनर्थ बड़ा भारी,
कलुषित कर दी है मंदिर की
चिरकालिक शुचिता सारी।
ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है
देवी की गरिमा से भी,
किसी बात में हूँ मैं आगे
माता की महिमा के भी?
भीड़मेंसेकोईकहताहैकिसुखियाकापिताबहुतबड़ापापीहैऔरउसनेमंदिरमेंजाकरबहुतबड़ाअनर्थकरदिया।उसके मंदिर में जाने से मंदिर अपवित्र हो गया।
यहसुनकरसुखियाकेपिताकाकहनाहैकिऐसाकैसेहोसकताहै।उसकाकहनाहैकिदेवीमाँकीमहिमाकेआगेउसकीअपवित्रताबहुतहीतुच्छहै।एकमामूलीसाआदमीभलाभगवानकाबालभीकैसेबाँकाकरसकताहै।
माँ के भक्त हुए तुम कैसे,
करके यह विचार खोटा?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम
गौरव करते हो छोटा।
कुछ न सुना भक्तों ने, झट से
मुझे घेरकर पकड़ लिया,
मार मारकर मुक्के घूँसे
धम्म से नीचे गिरा दिया।
सुखियाकेपिताकाकहनाहैकिवेलोगमाँकेभक्तहोहीनहींसकते।भलाभगवानकेभक्तकेमनमेंऐसेतुच्छविचारकैसेआसकतेहैं।वे लोग तो भगवान की महिमा को कम कर रहे हैं।
बाकी लोग उसकी कुछ नहीं सुनते हैं।लोगउसेघेरलेतेहैंऔरफिरउसपरलातघूँसोंकीबरसातहोनेलगतीहै।
मेरे हाथों से प्रसाद भी
बिखर गया हा!सबकासब,
हाय!अभागी बेटी तुझ तक
कैसे पहुँच सके यह अब।
न्यायालय ले गए मुझे वे,
सात दिवस का दंड विधान
मुझको हुआ, हुआ था मुझसे
देवी का महान अपमान!
उसमारापीटीमेंउसकेहाथोंसेप्रसादगिरजाताहै।अबवहइसबातकोसोचकरदुखीहैकिअपनीबेटीकेलिएप्रसादभीनहींलेजापाएगा।लोगउसेअदालतलेजातेहैं,जहाँउसेसातदिनोंकेलिएजेलकीसजासुनाईजातीहै।सुखियाकेपिताकोलगनेलगताहैकिजरूरउसनेदेवीकाअपमानकियाहोगा।
मैंने स्वीकृत किया दंड वह
शीश झुकाकर चुप ही रह
उस असीम अभियोग, दोष का
क्या उत्तर देता, क्या कह?
सात रोज ही रहा जेल में
या कि वहाँ सदियाँ बीतीं,
अविश्रांत बरसा के भी
आँखें तनिक नहीं रीतीं।
सुखियाकापितासिरझुकाकरउसदंडकोस्वीकारकरलेताहै।उसके पास अपनी सफाई में कहने को कुछ नहीं है।जेलकेवेसातदिनऐसेबीततेहैंजैसेसदियाँबीतरहीहों।उसकी आँखों से लगातार आँसू बहते रहते हैं।अनवरतआँसूबहनेकेबादभीउसकीआँखेंसूखीरहतीहैं।यहाँपरसूखीआँखोंकामतलबहैकिउनआँखोंमेंअबउम्मीदकीएकभीकिरणनहींबचीहै।
दंड भोगकर जब मैं छूटा,
पैर न उठते थे घर को
पीछे ठेल रहा था कोई
भय जर्जर तनु पंजर को।
पहले की सी लेने मुझको
नहीं दौड़कर आई वह,
उलझी हुई खेल में ही हा!
अबकी दी न दिखाई वह।
जबवहजेलसेछूटताहैऔरघरकेलिएचलताहैतोउसकेपैरनहींउठरहेहैं।ऐसालगताहैकिभयकेकारणउसकाशरीरबेजानहोचुकाहैऔरउसबेजानकायाकोकोईघरकीओरधकेलरहाथा।जबवहघरपहुँचताहैतोहमेशाकीतरहउसकीबेटीदौड़करनहींआतीहैऔरनहीवहकहींखेलतीहुईदिखाईदेतीहै।उसेआभासहोजाताहैकिउसकीबेटीअबइसदुनियामेंनहींहै।
उसे देखने मरघट को ही
गया दौड़ता हुआ वहाँ,
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही
फूँक चुके थे उसे जहाँ।
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी,
हाय!फूल सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढ़ेरी।
वहअपनीबच्चीकोदेखनेकेलिएसीधाश्मशानपहुँचताहै।उसकेरिश्तेदारोंनेपहलेहीउसकीबच्चीकाअंतिमसंस्कारकरदियाहै।बुझीहुईचितादेखकरउसकाकलेजाजलउठताहैयानिउसकादुखऔरभीबढ़जाताहै।उसकीफूलसीसुंदरबच्चीअबराखकेढ़ेरमेंबदलचुकीहै।
अंतिम बार गोद में बेटी,
तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी
तुझको दे न सका मैं हा।
वह विलाप करने लगता है।उसेअफसोसहोरहाहैकिअपनीबेटीकोअंतिमबारगोदीमेंनलेसका।उसेइसबातकाभीअफसोसहोरहाहैकिअपनीबेटीकोवहदेवीकाप्रसादभीनदेसका।