कबीर
साखियाँ
第2部分
काबा फिरि कासी भया रामहि भया रहीम
मोट चून मैदा भया रहा कबीरा जीम।
काबाहीबदलकरकाशीहोजातीहैऔररामहीरहीमहोतेहैं।यहवैसेहीहोताहैजैसेआटेकोपीसनेसेमैदाबनजाताहै,जबकिदोनोंगेहूंकेहिरूपहैं।इसलिएचाहेआपकाशीजाएँयाकाबाजाएँ,रामकीपूजाकरेंयाअल्लाहकीइबादतकरेंहरहालतमेंआपभगवानकेहीकरीबजाएँगे।
उँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होई
सुबरन कलस सुरा भरा, साधु निंदा सोई।
सिर्फऊँचीजातियाऊँचेकुलमेंजन्मलेनेसेकुछनहींहोताहै।आपके कर्म अधिक मायने रखते हैं।आपके कर्मों से ही आपकी पहचान बनती है।यहवैसेहीहैजैसेयदिसोनेकेबरतनमेंमदिरारखीजायेतोइससेसोनेकेगुणफीकेपड़जातेहैं।
सबद
मोकों कहाँ ढ़ूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतहि मिलियो, पल भर की तालास में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसो की स्वांस में।
लोगभगवानकीतलाशमेंमंदिर,मस्जिद,मजारऔरतीर्थस्थानोंपरबेकारभटकतेहैं।पूजा पाठ या तंत्र मंत्र सिर्फ आडम्बर हैं।इनसे ईश्वर नहीं मिलते हैं।भगवान तो हर व्यक्ति की हर सांस में बसते हैं।जरूरत है उन्हें सही ढ़ंग से खोजने की।जोसहीतरीकेसेध्यानलगाकरईश्वरकोखोजताहैउसेवेतुरंतमिलजातेहैं।
संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी॥
हितिचित्तकीद्वैथूँनीगिराँनी,मोहबलिंडातूटा।
त्रिस्नाँछाँनिपरिघरऊपरि,कुबधिकाभाँडाँफूटा।
जोग जुगति काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ॥
इससबदमेंकबीरनेज्ञानकीआँधीसेहोनेबालेबदलावोंकेबारेमेंबतायाहै।कविकाकहनाहैकिजबज्ञानकीआँधीआतीहैतोभ्रमकीदीवारटूटजातीहैऔरमोहमायाकेबंधनखुलजातेहैं।ज्ञानकेप्रभावसेआत्मचित्तकेखंभेगिरजातेहैंऔरमोहकीशहतीरटूटजातीहै।हमारेऊपरसेतृष्णाकीछतहटजातीहैऔरसभीभांडेफूटजातेहैंमतलबहमारेऊपरपड़ेआडंबरोंकेपरदेहटजातेहैं।जबहमेंईश्वरकाज्ञानमिलताहैतोमनकासारामैलनिकलजाताहै।आँधीकेबादजोबारिशहोतीहैउसकेहरबूँदमेंहरिकाप्रेमसमायाहोताहै।जैसेसूर्यकेनिकलतेहीअंधेराभागजाताहैउसीतरहज्ञानकेआनेसेसारीदुविधामिटजातीहै।