केदारनाथअग्रवाल
चाँद गहना से लौटती बेर
第2部分
चुप खड़ा बगुला डुबाये टांग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले को डालता है।
बगुलापानीमेंअपनीटांगडुबाकरचुपचापखड़ाहैऔरजैसेहीकिसीमछलीकोदेखताहैतोउसकाध्यानभंगहोजाताहै।वहचटसेउसेचोंचमेंदबाकरअपनेगलेकेनीचेउतारलेताहै।
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबाकर
दूर उड़ती है गगन में।
एककालेसरवालीचालाकचिड़ियाअपनेसफेदपंखोंकेझपाटेसेजलकेहृदयपरतेजीसेटूटपड़तीहैऔरएकचतुरमछलीकोअपनेपीलेचोंचमेंदबाकरआसमानमेंउड़जातीहै।
औ यहीं से
भूमि ऊंची है जहाँ से
रेल की पटरी गयी है
ट्रेन का टाइम नहीं है
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ
जाना नहीं है।
सामने ऊंची जमीन से रेलवे लाइन गई है।लेकिन अभी ट्रेन का समय नहीं हुआ है।कवि को कहीं जाने की जल्दी भी नहीं है।इसलिएवहवहाँकीसुंदरताकोअपनीआँखोंमेंमनभरकरउतारनेकेलिएपूरीतरहसेआजादहै।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊंची ऊंची पहाड़ियां
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर उधर रीवां के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं।
पठारीक्षेत्रकीपहाड़ियांकमऊंचाईवालीऔरबेडौलहोतीहैं।साथमेंबबूलऔररीवांकेकांटेदारपेड़कोईसुंदरदृश्यप्रस्तुतनहींकररहेहैं।
सुन पड़ता है मीठा मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें।
सुन पड़ता है वनस्थली का हृदय चीरता
उठता गिरता सारस का स्वर
टिरटोंटिरटों।
इसबंजरभूमिपरभीतोतेकामीठासुरसुनाईपड़ताहै।सारसकीआवाजजंगलकेसीनेकोचीरतेहुएनिकलजातीहै।
मन होता है
उड़ जाऊं मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूं
चुप्पेचुप्पे।
कविकामनकरताहैकिवोउसीसारसकेसाथपंखफैलाकरउड़जाए।कविउड़करवहाँपहुँचनाचाहताहैजहाँहरेखेतमेंकोईप्रेमीयुगलछुपकरमिलरहेहैं।वहाँदबेपाँवजाकरकविउनकीप्रेमकहानीसुननाचाहताहै।