सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
मेघआये
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगीं गली गली
पाहुन ज्यो आये हों गाँव में शहर के
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के
जबप्रचंडगर्मीकेबादकालेबादलआसमानपरछानेलगतेहैंतोहरकोईबड़ीखुशीसेउसकास्वागतकरताहै।इसकवितामेंमेघकेस्वागतकीतुलनादामादकेस्वागतसेकीगईहै।हमारेयहाँहरजगहदामादकीबड़ीमानमर्यादाहोतीहै।खासकरगांवोंमेंतोजैसेपूरागांवहीदामादकेस्वागतमेंजुटजाताहै।मेघ किसी जमाई की तरह सज संवर कर आया है।उसकेस्वागतमेंआगे——आगेनाचतीगातीहुईहवाचलरहीहै,ठीकउसीतरहजैसेगांवकीसालियाँकिसीजमाईकेआनेकेसमयकरतीहैं।लोगदरवाजेऔरखिड़कियाँखोलकरउसकीएकझलकदेखनेकोबेताबहैं।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूंघट सरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
जबमानसूनमेंतेजहवाचलतीहैतोपेड़झुकजातेहैंऔरऐसालगताहैजैसेवेगरदनउचकाकरमेघरूपीपाहुनकोदेखरहेहैं।आंधीचलरहीहैऔरधूलऐसेभागरहीहैजैसेकोईसुंदरीअपनाघाघराउठायेहुएभागरहीहो।नदीठिठककरअपनाघूंघटसरकारहीहैऔरअपनीबांकीनजरसेमेघकोनिहाररहीहै।
बूढ़े पीपल ने बढ़कर आगे जुहार की
बरस बाद सुधि लीन्ही ' -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवाड़ की
हरसाया ताल लाये पानी परात भर के
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
पीपलकेपेड़प्राय:बहुतपुरानेहोतेहैं,इसलिएयहाँउसेबूढ़ापीपलकहागयाहै।बूढ़ा पीपल आगे बढ़कर मेघ को प्रणाम कर रहा है।लताएँऐसेकिवाड़कीओटमेंचिपकगईहैंजैसेव्याकुलहोकरपूछरहीहोंकिइसजमाईनेबहुतदिनोंबादउनकीसुधिलीहो।तालाबखुशहोकरअपनेविशालपरातमेंपानीभरकरलायाहै।कईजगहमेहमानकेआनेपरउसकेपाँवपरातमेंधोनेकारिवाजहै।रामायणमेंकेवटनेरामकेपाँवधोएथेतबउन्हेंअपनीनावपरचढ़ायाथा।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी
क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढ़रके
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
बादल क्षितिज की अटारी पर चढ़ गया है।अटारी बालकनी का देशज रूप है।मेघकोअटारीपरदेखकरबिजलीखुशीसेचमकरहीहैजैसेकहरहीहोउसेपहलेजोआशंकाथीकिमेघनहींआयेंगेवोअबसमाप्तहोचुकीहै।आखिरमेंबादलऐसेबरसनेलगतेहैंजैसेदोप्रेमीलम्बीजुदाईकेबादमिलकरआंसुओंकीधारबहारहेहैं।