सुमित्रानंदनपंत
ग्रामश्री
फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चांदी की सी उजली जाली।
तिनके के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।
इसकवितामेंगाँवकेखेतोंकेसौंदर्यकाचित्रणहुआहै।यदिआपगाँवमेंनहींभीरहतेहोंतबभीआपनेबसोंयारेलमेंसफरकरतेसमयगाँवकीनैसर्गिकसुंदरताकोजरूरनिहाराहोगा।दूरदूरतकऐसालगताहैजैसेहरेरंगकीमखमलकीचादरबिछीहुईहोऔरउसपरजबसूरजकीकिरणेंचमकतीहैंतोलगताहैजैसेकिसीनेचांदीकाजालबिछादियाहो।घासकेहरेतनपरलगताहैहरेवस्त्रहवामेंहिलरहेहों।जबआपदूरक्षितिजपरदेखेंगेतोलगेगाजैसेसांवलीसीधरतीपरनिर्मलनीलाआकाशअपनेपलकबिछारहाहो।
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूं में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिनियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कली, तीसी नीली।
जौऔरगेहूंमेंबालियाँआजानेसेधरतीखुशीसेरोमांचितलगरहीहै।येबालियाँधरतीकीदंतपंक्तियोंकीतरहलगरहीहै।उसरोमांचकीशोभाअरहरऔरसनवसुधाकीकरघनीबनकरबढ़ारहीहैं।सरसोंकेपीलेफूलअपनातैलीयसुगंधबिखेररहेहैं।साथमेंतीसीकेनीलेफूलमानोंनीलमपत्थरकेनगीनेकीतरहदिखरहेहैं।
रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रहीं सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकी
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी।
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर।
मटरकेपौधेऐसेलगरहेहैंजैसेसखियाँमखमलकीपेटियोंमेंबीजछिपाकरखड़ीहोकरहंसरहीहैं।रंगबिरंगीतितलियाँरंगीलेफूलोंपरउड़रहीहैंऔरहवाकेझोंकेसेजबफूलएकडालीसेदूसरीडालीकोछूतेहैंतोलगताहैवेखुशीसेफूलेनहींसमारहेहैं।समूचेतौरपरदेखाजाएतोरंगोंकीछटाबिखरीहुईहै।
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली
झर रहे ढ़ाक, पीपल के दल
हो उठी कोकिला मतवाली।
महके कटहल, मुकुलित जामुन
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीम्बू, दारिम
आलू, गोभी, बैगन, मूली।
आमकेपेड़कीडालीचांदीऔरसोनेकीमंजरियोंसेलदगयेहैं।आमकेबौरकीखुशबूआपपरनशेजैसाअसरकरसकतीहै।पीपलकेपत्तेझरनेशुरुहोगयेहैंऔरकोयलवसंतऋतुकीमादकतामेंमतवालीहोगईहै।कटहलकेपेड़ोंसेऔरअधखिलेजामुनकेफूलोंसेमाहौलमहकनेलगाहै।झरबेरीकीझाड़ियाँभीफूलोंकेवजनसेलदकरझूलनेलगीहैं।साथमेंअन्यपौधोंकेफूलपूरीतस्वीरकोमूर्तरूपदेरहेहैं।
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं
पक गये सुनहरे मधुर बेर
अंवली से तरु की डाल जड़ी
लहलह पालक, महमह धनिया
लौकी औ सेम फलीं फैलीं।
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी थैली।
अमरूदइतनेपकगयेहैंकिउनपरलाललालनिशानपड़गयेहैं।बेरपकगयेहैंऔरआंवलेसेपेड़कीडालऐसेलगतीहैजैसेउनपरसितारेजड़दियेगयेहों।लौकी और सेम पूरे जमीन पर उधर उधर फैल गई है।टमाटर मखमल की तरह लाल हो गये हैं।मिर्चकेपौधेकिसीहरीभरीथैलीकीतरहलगरहेहैं।
बालू के सांपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपट छाई
तट पर तरबूजों की खेती
अंगुली की कंघी से बगुले
कलगी संवारते हैं कोई
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती है सोई।
गंगाकेरेतीलेकिनारोंपरबालूमेंलंबीलंबीलकीरेबनीहुईहैं।वेलकीरेंऐसाप्रतीतहोतीहैंजैसेकईसांपसोयेहुएहों।वहाँपरसरपटबिछीहुईतरबूजकीखेतीबड़ीसुंदरलगरहीहै।पासमेंकोईबगुलाअपनीअंगुलीसेअपनीकलगीमेंकंघीकररहाहै।पानीमेंसुरखाबतैररहेहैंऔरकिनारेपरमगरअलसायासासोयाहुआहै।
हंसमुख हरियाली हिम आतप
सुख से अलसाए से सोये,
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोये।
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन।
जाड़ेकीधूपसेहरियालीअलसाकरऐसेसोईहैजैसेरातकेअंधेरेमेंतारोंकेसपनेदेखरहीहो।जाड़ेकेमौसमकाअंतआगयाहैऔरवसंतकीशुरुआतहै।ऐसेमेंनीलेआसमानकेनीचेगाँवऐसेलगरहाहैजैसेजवाहरातोंकाडब्बाखुलापड़ाहो।येजवाहरअपनीशोभासेलोगोंकेमनकोहरलेरहाहै।