क्षितिज क्लास 10 हिंदी

आत्मकथ्य

जयशंकरप्रसाद

जयशंकरप्रसादसेहिंदीपत्रिकाहंसकेएकविशेषअंककेलिएआत्मकथालिखनेकोकहागयाथा।लेकिन वे अपनी आत्मकथा लिखना नहीं चाहते थे।इसकवितामेंउन्होंनेउनकारणोंकावर्णनकियाहैजिसकेकारणवेअपनीआत्मकथानहींलिखनाचाहतेथे।



मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य मलिन उपहास
तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।

भँवरेगुनगुनाकरपतानहींअपनीकौनसीकहानीकहनेकीकोशिशकरतेहैं।शायदउन्हेंनहींपताहैकिजीवनतोनश्वरहैजोआजहैऔरकलसमाप्तहोजाएगा।पेड़ोंसेमुरझाकरगिररहीपत्तियाँशायदजीवनकीनश्वरताकाप्रतीकहैं।मनुष्य जीवन भी ऐसा ही है;क्षणिक।

इसलिए इस जीवन की कहानी सुनाने से क्या लाभ।यहसंसारअनंतहैजिसमेकितनेहीजीवनकेइतिहासभरेपड़ेहैं।इनमेंसेअधिकतरएकदूसरेपरघोरकटाक्षकरतेहीरहतेहैं।इसकेबावजूदपतानहींतुममेरीकमजोरियोंकेबारेमेंक्योंसुननाचाहतेहो।मेराजीवनतोएकखालीगागरकीतरहहैजिसकेबारेमेंसुनकरतुम्हेंशायदहीआनंदआयेगा।

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यहविडंबना!अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं।

मेरेजीवनकीकमियोंकोसुनकरऐसानहोकितुमयेसमझनेलगोकितुम्हारेजीवनमेंसबकुछअच्छाहीहुआऔरमेराजीवनहमेशाएककोरेकागजकीतरहथा।कविकाकहनाहैकिवेइसदुविधामेंभीहैंकिदूसरेकीकमियोंकोदिखाकरउनकीहँसीउड़ाएँयाफिरअपनीकमियोंकोजगजाहिरकरदें।



उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसते होने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

कविकाकहनाहैकिउन्होंनेकितनेस्वप्नदेखेथे,कितनीहीमहात्वाकांक्षाएँपालीथीं।लेकिन सारे सपने जल्दी ही टूट गये।ऐसालगाकिमुँहतकआनेसेपहलेहीनिवालागिरगयाथा।उन्होंनेजितनाकुछपानेकीहसरतपालरखीथी,उन्हेंउतनाकभीनहींमिला।इसलिएउनकेपासऐसाकुछभीनहींकिजीवनकीसफलताओंयाउपलब्धियोंकीउज्ज्वलगाथाएँबतासकें।

जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनि उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।

कभीकोईऐसाभीथाजिसकेचेहरेकोदेखकरकविकोप्रेरणामिलतीथी।लेकिन अब उसकी यादें ही बची हुई हैं।अबमैंतोमैंएकथकाहुआराहीहूँजिसकासहाराकेवलवोपुरानीयादेंहैं।



सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

इसलिएकिसीकोभीइसकाकोईहकनहींहैकिमुझेकुरेदकरमेरेजख्मोंकोदेखे।मेराजीवनइतनाभीसार्थकनहींकिमैंइसकेबारेमेंबड़ी——बड़ीकहानियाँसुनाताफिरूँ।इससेअच्छातोयहीहोगाकिमैंमौनरहकरदूसरेकेबारेमेंसुनतारहूँ।कविकाकहनाहैकिउनकीमौनव्यथाथकीहुईहैऔरशायदअभीउचितसमयनहींआयाहैकिवेअपनीआत्मकथालिखसकें।



Baidu
map