कन्यादान
ऋतुराज
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
इसकवितामेंउसदृश्यकावर्णनहैजबएकमाँअपनीबेटीकाकन्यादानकररहीहै।बेटियाँ ब्याह के बाद पराई हो जाती हैं।जिसबेटीकोकोईभीमातापिताबड़ेजतनसेपालपोसकरबड़ीकरतेहैं,वहशादीकेबाददूसरेघरकीसदस्यहोजातीहै।इसकेबादबेटीअपनेमाँबापकेलिएएकमेहमानबनजातीहै।
इसलिएलड़कीकेलिएकन्यादानशब्दकाप्रयोगकियाजाताहै।जाहिरहैकिजिससंतानकोकिसीमाँनेइतनेजतनसेपालपोसकरबड़ाकियाहो,उसेकिसीअन्यकोसौंपनेमेंगहरीपीड़ाहोतीहै।बच्चेकोपालनेमेंमाँकोकहींअधिकदर्दकासामनाकरनापड़ताहै,इसलिएउसेदानकरतेवक्तलगताहैकिवहअपनीआखिरीजमापूँजीकिसीऔरकोसौंपरहीहो।
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
लड़की अभी सयानी नहीं हुई थी;इसकामतलबहैकिहालाँकिवहबड़ीहोगईथीलेकिनउसमेंअभीभीदुनियादारीकीपूरीसमझनहींथी।वहइतनीभोलीथीकिखुशियाँमनानेतोउसेआताथालेकिनयहनहींपताथाकिदुखकासामनाकैसेकियाजाए।उसकेलिएबाहरीदुनियाकिसीधुँधलेतसवीरकीतरहथीयाफिरकिसीगीतकेटुकड़ेकीतरहथी।ऐसाअक्सरहोताहैकिजबतककोईअपनेमातापिताकेघरकोछोड़करकहींऔरनहींरहनाशुरुकरदेताहैतबतकउसकासमुचितविकासनहींहोपाताहै।
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
जाते-जाते माँ अपनी बेटी को कई नसीहतें दे रही है।माँकहतीहैंकिकभीभीअपनीसुंदरतापरइतरानानहींचाहिएक्योंकिअसलीसुंदरतातोमनकीसुंदरताहोतीहै।वहकहतीहैंकिआगकाकामतोचूल्हाजलाकरघरोंकोजोड़नेकाहैनाकिअपनेआपकोऔरअन्यलोगोंकोदुखमेंजलानेका।माँकहतीहैकिअच्छेवस्त्रऔरमहँगेआभूषणबंधनकीतरहहोतेहैंइसलिएउनकेचक्करमेंनहींपड़नाचाहिए।आखिरमेंमाँकहतीहैकिलड़कीजैसीदिखाईमतदेना।इसके कई मतलब हो सकते हैं।एकमतलबहोसकताहैकिमाँउसेअबएकजिम्मेदारऔरतकीभूमिकामेंदेखनाचाहतीहैऔरचाहतीहैकिवहअपनालड़कपनछोड़दे।दूसरामतलबहोसकताहैकिउसेहरसंभवयहकोशिशकरनीहोगीकिलोगोंकीबुरीनजरसेबचे।हमारेसमाजमेंलड़कियोंकीकमजोरस्थितिकेकारणउनपरयौनअत्याचारकाखतराहमेशाबनारहताहै।ऐसेमेंकईमाँएंअपनीलड़कियोंकोयेनसीहतदेतीहैंकिवेअपनेयौवनकोजितनाहोसकेदूसरोंसेछुपाकररखें।