क्षितिज क्लास 10 हिंदी

सूरदास

ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
“सूरदास”अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।



इनछंदोंमेंगोपियाँऊधवसेअपनीव्यथाकहरहीहैं।वेऊधवपरकटाक्षकररहीहैं,क्योंकिउन्हेंलगताहैकिऊधवतोकृष्णकेनिकटरहतेहुएभीउनकेप्रेममेंनहींबँधेहैं।गोपियाँकहतीहैंकिऊधवबड़ेहीभाग्यशालीहैंक्योंकिउन्हेंकृष्णसेजराभीमोहनहींहै।ऊधवकेमनमेंकिसीभीप्रकारकाबंधनयाअनुरागनहींहैबल्किवेतोकृष्णकेप्रेमरससेजैसेअछूतेहैं।वेउसकमलकेपत्तेकीतरहहैंजोजलकेभीतररहकरभीगीलानहींहोताहै।जैसेतेलसेचुपड़ेहुएगागरपरपानीकीएकभीबूँदनहींठहरतीहै,ऊधवपरकृष्णकेप्रेमकाकोईअसरनहींहुआहै।ऊधवतोप्रेमकीनदीकेपासहोकरभीउसमेंडुबकीनहींलगातेहैंऔरउनकामनपरागकोदेखकरभीमोहितनहींहोताहै।गोपियाँ कहती हैं कि वे तो अबला और भोली हैं।वेतोकृष्णकेप्रेममेंइसतरहसेलिपटगईंहैंजैसेगुड़मेंचींटियाँलिपटजातीहैं।

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
“सूरदास”अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।

इसछंदमेंगोपियाँअपनेमनकीव्यथाकावर्णनऊधवसेकररहींहैं।वेकहतीहैंकिवेअपनेमनकादर्दव्यक्तकरनाचाहतीहैंलेकिनकिसीकेसामनेकहनहींपातीं,बल्किउसेमनमेंहीदबानेकीकोशिशकरतीहैं।पहलेतोकृष्णकेआनेकेइंतजारमेंउन्होंनेअपनादर्दसहाथालेकिनअबकृष्णकेस्थानपरजबऊधवआएहैंतोवेतोअपनेमनकीव्यथामेंकिसीयोगिनीकीतरहजलरहींहैं।वेतोजहाँऔरजबचाहतीहैं,कृष्णकेवियोगमेंउनकीआँखोंसेप्रबलअश्रुधाराबहनेलगतीहै।गोपियाँकहतीहैंकिजबकृष्णनेप्रेमकीमर्यादाकापालनहीनहींकियातोफिरगोपियोंक्योंधीरजधरें।



हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौ लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ‘सूर’तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।

गोपियाँकहतीहैंकिउनकेलिएकृष्णतोहारिलचिड़ियाकीलकड़ीकेसमानहोगयेहैं।जैसेहारिलचिड़ियाकिसीलकड़ीकोसदैवपकड़ेहीरहताहैउसीतरहउन्होंनेनंदकेनंदनकोअपनेहृदयसेलगाकरपकड़ाहुआहै।वेजागतेऔरसोतेहुए,सपनेमेंभीदिन——रातकेवलकान्हाकान्हाकरतीरहतीहैं।जबभीवेकोईअन्यबातसुनतीहैंतोवहबातउन्हेंकिसीकड़वीककड़ीकीतरहलगतीहै।कृष्णतोउनकीसुधलेनेकभीनहींआएबल्किउन्हेंप्रेमकारोगलगाकेचलेगये।वेकहतीहैंकिउद्धवअपनेउपदेशउन्हेंदेंजिनकामनकभीस्थिरनहींरहताहै।गोपियोंकामनतोकृष्णकेप्रेममेंहमेशासेअचलहै।



हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै‘सूर’,जो प्रजा न जाहिं सताए।

गोपियाँकहतीहैंकिकृष्णतोकिसीराजनीतिज्ञकीतरहहोगयेहैं।स्वयंनआकरऊधवकोभेजदियाहैताकिवहाँबैठे——बैठेहीगोपियोंकासाराहालजानजाएँ।एकतोवेपहलेसेहीचतुरथेऔरअबतोलगताहैकिगुरुग्रंथपढ़लियाहै।कृष्णनेबहुतअधिकबुद्धिलगाकरगोपियोंकेलिएप्रेमकासंदेशभेजाहै।इससेगोपियोंकामनऔरभीफिरगयाहैऔरवहडोलनेलगाहै।गोपियोंकोलगताहैकिअबउन्हेंकृष्णसेअपनामनफेरलेनाचाहिए,क्योंकिकृष्णअबउनसेमिलनाहीनहींचाहतेहैं।गोपियाँकहतीहैं,किकृष्णउनपरअन्यायकररहेहैं।जबकिकृष्णकोतोराजधर्मपताहोनाचाहिएजोयेकहताहैकिप्रजाकोकभीभीसतानानहींचाहिए।



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