क्षितिज क्लास 10 हिंदी

तुलसीदास

परशुराम लक्ष्मण संवाद

第2部分

तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।बार बार मोहि लागि बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा।परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥
अब जनि दै दोसु मोहि लोगू।कटुबादी बालकु बधजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा।अब येहु मरनिहार भा साँचा॥



लक्ष्मणकेकटुवचनकोसुनकरपरशुरामकोइतनागुस्साआगयाकिउन्होंनेअपनाफरसाहाथमेंलेलियाऔरउसेलहरातेहुएबोलेकितुमतोबारबारमुझेगुस्सादिलाकरमृत्युकोनिमंत्रणदेरहेहो।यहकड़वेवचनबोलनेवालाबालकवधकेहीयोग्यहैइसलिएअबमुझेकोईदोषनहींदेना।अबतकतोबालकसमझकरमैंछोड़रहाथालेकिनलगताहैकिअबइसकीमृत्युनिकटहीहै।

कौसिक कहा छमिअ अपराधू।बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही।आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उतर देत छोड़ौं बिनु मारे।केवल कौसिक सील तुम्हारे॥
न येहि काटि कुठार कठोरे।गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे॥

गाधिसूनू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहूँ न बूझ अबूझ॥

परशुरामकोक्रोधितहोतेहुएदेखकरविश्वामित्रनेकहाकिहेमुनिवरसाधुलोगतोबालककेगुणदोषकीगिनतीनहींकरतेहैंइसलिएइसकेअपराधकोक्षमाकरदीजिए।परशुरामनेजवाबदियाकियदिसामनेअपराधीहोतोखरऔरकुल्हाड़ीमेंजरासीभीकरुणानहींहोतीहै।लेकिनहेविश्वामित्रमैंकेवलआपकेशीलकेकारणइसेबिनामारेछोड़रहाहूँ।नहींतोअभीमैंइसीकुल्हाड़ीसेइसकाकामतमामकरदेताऔरमुझेबिनाकिसीपरिश्रमकेहीअपनेगुरुकेकर्जकोचुकानेकामौकामिलजाता।ऐसासुनकरविश्वामित्रमनहीमनहँसेऔरसोचरहेथेकिइनमुनिकोसबकुछमजाकलगताहै।यहबालकफौलादकाबनाहुआऔरयेकिसीअबोधकीतरहइसेगन्नेकाबनाहुआसमझरहेहैं।



कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा।को नहि जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नीकें।गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा।दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली।तुरत देउँ मैं थैली खोली॥

लक्ष्मणनेकहाकिहेमुनिआपकेपराक्रमकेबारेमेंकौननहींजानता।आपनेअपनेमातापिताकेऋणकोतोमाताकीहत्याकरकेचुकायाथाऔरअबआपअपनेगुरुकेऋणकीबातकररहेहैं।इतनेदिनकाब्याजजोबढ़ाहै(गुरुकेऋणका)वोभीआपमेरेहीमत्थेडालनाचाहतेहैं।बेहतरहोगाकिआपकोईव्यावहारिकबातकरेंतोमैंथैलीखोलकरआपकेमूलधनऔरब्याजदोनोंकीपूर्तिकरदूँगा।



सुनि कटु बचन कुठार सुधारा।हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही।बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥
मिले न कबहोँ सुभट रन गाढ़े।द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे।रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥

लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥

लक्ष्मणकेऐसेकठोरवचनसुनकरपरशुरामकुल्हाड़ीउठाकरलक्ष्मणकीतरफआक्रमणकीमुद्रामेंदौड़े।उन्हेंऐसाकरतेदेखकरवहाँबैठेलोगहायहायकरनेलगे।इसपरलक्ष्मणनेकहाकिआपतोबिनावजहहीमुझेफरसादिखारहेहैं।मैं आपको ब्राह्मण समझकर छोड़ रहा हूँ।आप तो उनकी तरह हैं जो अपने घर में शेर होते हैं।लगताहैकिआजतकआपकापालाकिसीसच्चेयोद्धासेनहींहुआहै।ऐसादेखकररामनेलक्ष्मणकोबड़ेस्नेहसेदेखाऔरउन्हेंशाँतहोनेकाइशाराकिया।जबरामनेदेखाकिलक्ष्मणकेव्यंग्यसेपरशुरामकागुस्साअत्यधिकबढ़चुकाथातोउन्होंनेउसआगकोशाँतकरनेकेलिएजलजैसीठंडीवाणीनिकाली।



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