मधुर मधुर मेरे दीपक जल
महादेवीवर्मा
मधुर मधुर मेरे दीपक जल
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर।
इसकवितामेंअपनेमनकेदीपककोजलाकरदूसरोंकोराहदिखानेकीप्रेरणादीगईहै।मनकादीपकमधुरहोकरयदिहरघड़ी,हरदिनकरकेयुगोंतकजलेतोहरकिसीकेरास्तेकोप्रकाशितकरसकताहै।जलनेकीप्रक्रियामेंदीपकअपनीकुर्बानीदेताहैऔरपूरेसंसारकोरौशनकरताहै।इसशहादतमेंभीकवयित्रीनेदीपककोअपनीमधुरताकायमरखनेकीप्रेरणादीहै।
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल
पुलक पुलक मेरे दीपक जल।
जिसतरहसेधूपयाअगरबत्तीकीखुशबूचारोंओरफैलजातीहैउसीतरहसेआपकीकीर्तिचारोंओरफैलनीचाहिए।दीपककोखुशहोकरऐसेजलनाचाहिएजिससेउसकाएकएकअणुगलकरउसकेमुलायमशरीरकोविलुप्तकरदे।इसमेंअनंतरोशनीवैसेहीनिकलनीचाहिएजैसेसूरजपूरेसंसारमेंसबेरालाताहै।अंधेरा कई तरह का हो सकता है।अज्ञान का अंधेरा उन्हीं में से एक है।इसेदूरकरनेकेलिएबहुतशक्तिशालीदीपककीजरूरतहै।
सारे शीतल कोमल नूतन,
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण
विश्व शलभ सिर धुन कहता ' मैं
हाय न जल पाया तुझमें मिल।
सिहर सिहर मेरे दीपक जल।
जबदिएकीलौकाँपतेहुएजलेतोइतनाप्रभावपड़नाचाहिएकिसभीकोमलऔरशीतलचीजेंउससेज्वालाकीइच्छारखें।यहाँपरज्वालाकामतलबउसअसीमितऊर्जासेहैजोआपकोकुछभीकरगुजरनेकीशक्तिदेसके।जबपतंगोंकोकाँपतीलौसेटकरानेकामौकानमिलेतोवेभीहताशामेंअपनासरधुननेलगें।मतलबऊष्माइतनीहीहोनीचाहिएजिससेवहकिसीकेकामआसकेऔरउसेजलाकरभष्मनकरदे।
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल।
विहँस विहँस मेरे दीपक जल।
आकाशमेंअसंख्यतारेहैंलेकिनउनकेपासस्नेहनहींहै।उनकेपासअपनीरोशनीतोहैपरवेदुनियाकोरौशननहींकरपाते।वहींदूसरीओर,जलसेभरेसागरकाहृदयभीजलकरबादलकीरचनाकरताहैजिससेपूरीदुनियामेंबारिशहोतीहै।दीपककोऐसेहीअपनेलिएनहींबल्किदूसरोंकीभलाईकेलिएजलनाचाहिए।