आत्मत्राण
रवींद्रनाथटैगोर
विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
येकविताएकऐसेव्यक्तिकीप्रार्थनाहैजोस्वयंसुबकुछकरनाचाहताहै।किसीहारेहुएजुआरीकीतरहवहसबकुछभगवानभरोसेनहींछोड़नाचाहताहै।उसका अपने आप पर पूरा भरोसा है।उसेभरोसाहैकिवहहरमुसीबतकासामनाकरसकताहैऔरभगवानसेसिर्फमनोबलपानेकीइच्छारखताहै।
दुख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
जबदुखसेमनव्यथितहोजाएतबउसेईश्वरसेसांत्वनाकीअभिलाषानहींहै,बल्किवहयेप्रार्थनाकरताहैकिउसेहमेशादुखपरविजयप्राप्तहो।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
कहींकिसीसेमददनामिलेतोभीउसकापुरुषार्थनहींहिलनाचाहिए।लाभकीजगहकभीहानिभीहोजाएतोभीमनमेंअफसोसनहींहोनाचाहिए।
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।
वहभगवानसेयेनहींचाहताहैकिवोउसकीनैयाकोपारलगादें,बल्किउसमेंनावखेनेऔरतैरनेकीअसीमशक्तिदेदें।इससेवहखुदहीमुसीबतोंकेभँवरसेपारहोसकताहै।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
वहभगवानसेअपनीजिम्मेदारियाँकमकरनेकीविनतीनहींकरता।वहतोइतनीदृढ़शक्तिचाहताहैजिससेवहजीवनकेभारकोनिर्भयउठाकरजीसके।
नव शिर होकर सुख के दिन में
तव मुह पहचानूँ छिन-छिन में।
दुख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।
इनपंक्तियोंमेंयेसंदेशदियागयाहैकिसफलताकेनशेमेंचूरहोकरईश्वरकोभूलनानहींचाहिए।हरउसव्यक्तिकोयादरखनाचाहिएजिसनेआपकोसफलबनानेमेंथोड़ाभीयोगदानदियाहो।जबमेरेदिनबहुतबुरेचलरहेहोंऔरपूरीदुनियामुझपरअंगुलीउठारहीहोतबभीऐसानहोकिमैंतुमपरकोईशककरूँ।
एककहावतहैकिभगवानभीउसीकीमददकरतेहैंजोअपनीमददखुदकरताहै।किस्मतकेतालेकीएकहीचाभीहैऔरवोहैकड़ीमेहनतऔरदृढ़संकल्प।ईश्वरकाकामहैमनोबलऔरमार्गदर्शन,लेकिनअपनीमंजिलतकपहुँचनेकेलिएआपकोचलनातोखुदहीपड़ेगा।
आपअगरआधुनिकयुगकेसफलव्यक्तियोंकेबारेमेंपढ़ेंगेतोआपकोउनकीकठिनदिनचर्याकाअहसासहोगा।साथमेंइनसबव्यक्तियोंमेंएकऔरसमानताहैऔरवोहैउनकाअहंकारहीनव्यक्तित्व।