संसाधननियोजन
संसाधनोंकेविवेकपूर्णइस्तेमालकरनेकेलियेसंसाधननियोजनजरूरीहै।भारतजैसेदेशमेंसंसाधननियोजनऔरभीमहत्वपूर्णहोजाताहैजहाँसंसाधनोंकावितरणसमुचितनहींहै।
उदाहरणकेलिएझारखंडमेंप्रचुरमात्रामेंखनिजहैलेकिनपेयजलऔरअन्यसुविधाएँनहींहैं।मेघालयमेंजलप्रचुरमात्रामेंहैलेकिनअन्यसुविधाएँनहींहैं।इसलिएझारखंडऔरमेघालयकासहीविकासनहींहोपायाहै।संसाधनोंकेविवेकपूर्णइस्तेमालसेहीइनसमस्याओंकासमाधाननिकालाजासकताहै।
भारत में संसाधन नियोजन:
जनाबनातेसमयटेक्नॉलोजी,कौशलऔरसंस्थागतबातोंकाध्यानरखनेसेसंसाधनोंकाविवेकपूर्णइस्तेमालसुनिश्चितकियाजासकताहै।भारतमेंप्रथमपंचवर्षीययोजनासेहीसंसाधननियोजनएकप्रमुखलक्ष्यरहाहै।भारतमेंसंसाधननियोजनकेमुख्यबिंदुनिम्नलिखितहैं:
- पूरेदेशकेविभिन्नप्रदेशोंकेसंसाधनोंकीपहचानकरउनकीतालिकाबनाना।
- उपयुककौशल,टेक्नॉलोजीऔरसंस्थागतढाँचेकासहीइस्तेमालकरतेहुएनियोजनढ़ाँचातैयारकरना।
- संसाधननियोजनऔरविकासनियोजनकेबीचसहीतालमेलबैठाना।
संसाधनों का संरक्षण:
संसाधनोंकेदोहनसेकईसामाजिकऔरआर्थिकसमस्याएँउत्पन्नहोतीहैं।गांधीजीकामाननाथाकिआधुनिकटेक्नॉलोजीकीशोषणात्मकप्रवृत्तिकेकारणपूरीदुनियामेंसंसाधनोंकाक्षयहोताहै।इसलिएगांधीजीअत्यधिकउत्पादनकेखिलाफथेऔरउसकीजगहजनसमुदायद्वाराउत्पादनकासमर्थनकरतेथे।
हमजानतेहैंकिपृथ्वीपरसंसाधनसीमितमात्रामेंहैं।यदिउनकेअंधाधुंधइस्तेमालपररोकनहींलगेगीतोभविष्यमेंमानवजातिकेलियेकुछभीनहींबचेगा।इससे हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा।इसलिए संसाधनों का संरक्षण करना जरूरी हो जाता है।
भूसंसाधन:
भूमिहमारेजीवनकोआधारप्रदानकरतीहैइसलिएप्राकृतिकसंसाधनोंमेंभूसंसाधनसबसेमहत्वपूर्णहै।इसलिएभूसंसाधनकेइस्तेमालकेलियेसहीयोजनाकीआवश्यकताहै।भारत में कई तरह की भूमि है;जैसे कि पहाड़, पठार, मैदान और द्वीप।
पहाड़:भारत की कुल भूमि का 30% पहाड़ों के रूप में है।भारतकीकईनदियोंकाउद्गमइन्हींपहाड़ोंमेंहै।बारहमासीनदियोंमेंजलकाप्रवाहपहाड़ोंकेकारणबनारहताहै।येनदियाँअपनेसाथउपजाऊमिट्टीलातीहैंजिनसेमैदानोंकानिर्माणहोताहै।इननदियोंसेमिलनेवालेपानीसेहमारेखेतोंकीसिंचाईहोतीहै।पीने का पानी भी हमें इन्हीं नदियों से मिलता है।
मैदान:भारत की कुल भूमि का 43% मैदान के रूप में है।मैदानकीभूमिसमतलहोनेकेकारणअधिकतरआर्थिकक्रियाओंकेलियेअनुकूलहोतीहै।मैदानोंमेंघनीआबादीहोतीहैक्योंकिमैदानकीजमीनखेतीकेलायकहोतीहै।समतलभूमिमेंमकानऔरकलकारखानेआसानीसेबनायेजासकतेहैं।
पठार:भारत की कुल भूमि का 27% पठारों के रूप में है।इनपठारोंसेहमेंकईप्रकारकेखनिज,जीवाष्मईंधनऔरवनसंपदामिलतीहै।
भूउपयोग:
- वन
- कृषिकेलिएअनुपलब्धभूमि:कृषिकेलिएअनुपलब्धभूमिदोप्रकारकीहै।
- बंजर और कृषि अयोग्य भूमि
- गैरकृषिप्रयोगोंकेलिएभूमि:जैसेमकान,सड़क,कारखाने,आदिकेलिएभूमि।
- परती भूमि के अतिरिक्त अन्य कृषि अयोग्य भूमि
- स्थाई चारागाहें तथा अन्य गोचर भूमि
- विविधवृक्षों,वृक्षफसलोंतथाउपवनोंकेअधीनभूमि((जोशुद्धबोएगयेक्षेत्रमेंशामिलनहींहैं)
- कृषियोग्यबंजरभूमिजहाँपाँचसेअधिकवर्षोंसेखेतीनहींहुईहो।
- परतीभूमि:
- वर्तमानपरती(जहाँएकवर्षयाउससेकमसमयसेखेतीनहींहुईहो)
- पुरातनपरती(जहाँएकसेपाँचवर्षोंसेखतीनहींहुईहो)
- शुद्ध(निवल)बोयागयाक्षेत्र:एकवर्षमेंएकबारसेअधिकबोयेगयेखेतकोयदिशुद्धबोयेगयेक्षेत्रमेंजोड़दियाजाएतोउसेसकलबोयागयाक्षेत्रकहतेहैं।
भारत में भू उपयोग का प्रारूप:
भूउपयोगकाप्रारुपभौतिकऔरमानवीयकारकोंपरनिर्भरकरताहै।कुछ महत्वपूर्ण भौतिक कारक हैं;जलवायु, भू आकृति, मृदा के प्रकार, आदि।कुछ महत्वपूर्ण मानवीय कारक हैं;जनसंख्या,टेक्नॉलोजी,कौशल,जनसंख्याघनत्व,परंपरा,संस्कृति,आदि।
भारतकाकुलभौगोलिकक्षेत्रफल32.8लाखवर्गकिमीहै।लेकिनइसके93%भागकेआँकड़ेहीहमारेपासउपलब्धहैं।असमकोछोड़करपूर्वोत्तरराज्योंकेआँकड़ेनहींलिएगयेहैं।कुछऐसेकारणहैंजिनकीवजहसेपाकिस्तानऔरचीनकेकब्जेवालीजमीनकासर्वेक्षणनहींहोपायाहै।
स्थाईचारागाहोंकेअंतर्गतभूमिकमहोरहीहै,जिससेपशुओंकेचरनेकेलियेजगहकमपड़रहीहै।यदिपरतीभूमिऔरअन्यभूमिकोभीशामिलकरलेंतोभीशुद्धबोयेगयेक्षेत्रकाहिस्सा54%सेअधिकनहींहै।परतीभूमिकेअलावाजोभूमिबचतीहैउसकीगुणवत्तायातोअच्छीनहींहैयाउसपरखेतीकरनामहंगासाबितहोसकताहै।इसलिएइसप्रकारकीभूमिपरदोसालमेंकेवलएकयादोबारहीखेतीहोपातीहै।
किसीराज्यकीभौगोलिकसंरचनाकेआधारपरशुद्धबोयेजानेवालेक्षेत्रकाप्रारूपएकराज्यसेदूसरेराज्यमेंबदलजाताहै।पंजाबकीभूमिसमतलहोनेकेकारणयहाँ80%क्षेत्रशुद्धबोयेजानेवालेक्षेत्रकेअंतर्गतआताहै।लेकिनअरुणाचलप्रदेश,मिजोरम,मणिपुरऔरअंदमाननिकोबारद्वीपसमूहकीभूमिसमतलनहींहोनेकेकारणइनक्षेत्रोंमें10%क्षेत्रहीशुद्धबोयेजानेवालेक्षेत्रकेअंतर्गतआताहै।
राष्ट्रीय वन नीति (1952)काकहनाहैकिपारिस्थितिकीमेंसंतुलनबनाएरखनेकेलिएकुलभौगोलिकक्षेत्रफलका33%हिस्सावनकेरूपमेंहोनाचाहिए।लेकिन भारत में वन का क्षेत्र इससे कम है।गैरकानूनीढ़ंगसेजंगलकीकटाईऔरनिर्माणकार्यमेंतेजीआनेसेऐसाहोरहाहै।जंगलकेआसपासएकबड़ीआबादीरहतीहैजोवनसंपदापरनिर्भरकरतीहै।
भूमिप्रबंधनऔरसंरक्षणकेसमुचितउपायोंकेबगैरहीहमभूमिकालगातारऔरलंबेसमयसेउपयोगकररहेहैं।इसकेपरिणामस्वरूपभूमिकानिम्नीकरणहोरहाहै,कृषिपैदावारमेंकमीआईहै।इससकासमाजऔरपर्यावरणदोनोंपरबुराअसरहोरहाहै।
हमारेपूर्वजोंद्वाराजमीनकादोहननहींहुआथा,इसलिएहमेंविरासतमेंअच्छीस्थितिमेंजमीनमिलीथी।अबयहहमारीजिम्मेदारीबनतीहैकिआनेवालीपीढ़ियोंकेलिएअच्छीस्थितिमेंजमीनरहनेदें।हालकेदशकोंमेंजनसंख्यातेजीसेबढ़नेकेकारणभूसंसाधनकादोहनतेजीसेबढ़ाहै।इससे भूमि का निम्नीकरण तेज हो गया है।मानवगतिविधियोंकेदुष्परिणामोंसेप्राकृतिकशक्तियाँऔरभयानकहोगईहैंजिससेभूसंसाधनकानिम्नीकरणहोरहाहै।
ताजाआँकड़ोंकेअनुसारभारतमेंलगभग13करोड़हेक्टेअरभूमिनिम्नीकृतहै।इसमेंसेलगभग28%वनोंकेअंतर्गतआताहैऔर28%जलअपरदितक्षेत्रमेंआताहै।निम्नीकृतभूमिकाबाकी44%हिस्सालवणीयऔरक्षारीयहोचुकाहै।भूनिम्नीकरणकेकुछमुख्यकारणहैं,वनोन्मूलन,अतिपशुचारण,खनन,जमीनकाछोटे——छोटेटुकड़ोंमेंविभाजन,आदि।
झारखंड,छत्तीसगढ़,उड़ीसाऔरमध्यप्रदेशजैसेराज्यखनिजसंपदामेंधनीहैं।लेकिन इन राज्यों मेंखननकार्यसमाप्तहोजानेकेबादखानोंकोवैसेहीछोड़दियाजाताहै।वहाँपरयातोमलबेकेढ़ेरहोतेहैंयागहरीखाइयाँबनजातीहैं।उसके बाद ऐसी जमीन किसी काम की नहीं रह जाती है।इनराज्योंमेंखननकेअलावावनोन्मूलनकेकारणभीभूमिकानिम्नीकरणतेजीसेहुआहै।
उत्तरप्रदेश,पंजाबऔरहरियाणाजैसेकृषिकेमामलेमेंअग्रणीहैं।इनराज्योंमेंअत्यधिकसिंचाईकेकारणपानीकीकमीहोरहीऔरजलजमावकेकारणभूमिकाअम्लीकरणयाक्षारीकरणहोरहाहै।
बिहार,असमऔरअरुणाचलप्रदेशजैसेराज्योंमेंबाढ़कीवजहसेभूमिकानिम्नीकरणहोरहाहै।मानवगतिविधियोंकेदुष्परिणामोंकेकारणबाढ़अबपहलेसेअधिकभयानकहोनेलगीहै।
कुछराज्योंमेंखनिजोंकापरिष्करणहोताहै,जैसेचूनापत्थरतोड़ना,सीमेंटउत्पादन,आदि।इनक्षेत्रोंमेंभारीमात्रामेंधूलकानिर्माणहोताहै।धूलकेकारणमिट्टीद्वाराजलसोखनेकीप्रक्रियामेंबाधापड़तीहैजिससेभूमिकानिम्नीकरणहोरहाहै।
भूनिम्नीकरणसे कई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं;जैसे बाढ़, घटती उपज, आदि।इसकेपरिणामस्वरूपघरेलूसकलउत्पादघटजाताहैऔरदेशकोकईआर्थिकसमस्याओंसेजूझनापड़ताहै।
भू संसाधनों के संरक्षण के उपाय:
भू निम्नीकरण को निम्न तरीकों से रोका जा सकता है:
- वनारोपण
- चारागाहों का समुचित प्रबंधन
- काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर रेतीले टीलों स्थिर बनाना
- बंजर भूमि का उचित प्रबंधन
- सिंचाई का समुचित प्रबंधन
- फसलों की सही तरीके से कटाई
- खनन प्रक्रिया पर नियंत्रण
- खनन के बाद भूमि का समुचित प्रबंधन
- औद्योगिक जल के परिष्करण के बाद जल का विसर्जन
- सड़कों के किनारों पर वृक्षारोपण
- वनोन्मूलन की रोकथाम