मृदासंसाधन
मृदा एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है।मिट्टीमेंखेतीहोतीहैऔरमिट्टीकईजीवोंकाप्राकृतिकआवासभीहै।
मृदा का निर्माण:मिट्टीकेनिर्माणकीप्रक्रियाअत्यंतधीमीहोतीहै।मात्रएकसेमीमृदाकोबननेमेंहजारोंवर्षलगजातेहैं।शैलोंकेअपघटनक्रियासेमृदाकानिर्माणहोताहै।मृदाकेनिर्माणमेंकईप्राकृतिककारकोंकीमहत्वपूर्णभूमिकाहोतीहै;जैसे कि तापमान, पानी का बहाव, पवन।साथमेंइसप्रक्रियामेंकईभौतिकऔररासायनिकपरिवर्तनोंकायोगदानहोताहै।
मृदा का वर्गीकरण
बनावट,रंग,उम्र,रासायनिकगुण,आदिकेआधारपरमृदाकेकईप्रकारहोतेहैं।भारतमेंपाईजानेवालीमृदानिम्नलिखितप्रकारकीहैं:
जलोढ़मृदा
उपलब्धता:नदियोंयानदियोंद्वाराबनाएगयेमैदानोंमेंजलोढ़मृदापाईजातीहै।इस प्रकार की मृदा की आयु कम होती है।यहमृदाभारतमेंपूर्वऔरउत्तरकेमैदानोंमेंपाईजातीहै।इनक्षेत्रोंमेंगंगा,यमुनाऔरब्रह्मपुत्रनामकीनदियाँबहतीहैं।जलोढ़मृदाकासंचयननदियोंकेतंत्रद्वाराहोताहै।उत्तर के मैदान में जलोढ़ मृदा पाई जाती है।महानदीकृष्णा,गोदावरीऔरकावेरीकेनिकटकेतटीयमैदानोंमेंभीजलोढ़मृदापाईजातीहै।
गुण:जलोढ़मृदामेंसिल्ट,रेतऔरमृत्तिकाविभिन्नअनुपातोंमेंपाईजातीहै।जबहमनदीकेमुहानेसेऊपरघाटीकीओरबढ़तेहैंतोजलोढ़मृदाकेकणोंकाआकारबढ़ताजाताहै।जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है।यहीकारणहैकिउत्तरकेमैदानमेंघनीआबादीबसतीहै।
कणोंकेआकारकेअलावा,मृदाकोहमआयुकेहिसाबसेभीकईप्रकारोंमेंबाँटसकतेहैं।पुरानीजलोढ़मृदाकोबांगरकहतेहैंऔरइसकेकणछोटेआकारकेहोतेहैं।नईजलोढ़मृदाकोखादरकहतेहैंऔरइसकेकणबड़ेआकारकेहोतेहैं।
जलोढ़मृदामेंपोटाश,फॉस्फोरिकएसिडऔरचूनाप्रचुरमात्रामेंहोतीहै।इसलियेयहमृदागन्ने,धान,गेहूँ,मक्काऔरदालकीफसलकेलिएबहुतउपयुक्तहोतीहै।
कालीमृदा
उपलब्धता:काले रंग के कारण इसका नाम काली मृदा पड़ा है।इसे रेगर मृदा भी कहते हैं।दक्कनपठारकेउत्तरपश्चिमीभागमेंकालीमृदापाईजातीहै।यहमृदामहाराष्ट्र,सौराष्ट्र,मालवा,मध्यप्रदेशऔरछत्तीसगढ़केपठारोंमेंतथाकृष्णाऔरगोदावरीकीघाटियोंमेंपाईजातीहै।
गुण:कालीमृदामेंसूक्ष्मकणप्रचुरमात्रामेंहोतीहै।सूक्ष्मकणोंकेकारणयहमृदानमीकोलम्बेसमयतकरोकपातीहै।इसमृदामेंकैल्सियम,पोटाशियम,मैग्नीशियमऔरचूनाहोताहै।कालीमृदाकपासकीखेतीकेलिएबहुतउपयुक्तहोतीहै।कई अन्य फसल भी इस मृदा में उगाये जा सकते हैं।
लाल और पीली मृदा
इसमृदाकारंगरवेआग्नेयऔररूपांतरितचट्टानोंमेंलोहेकीउपस्थितिकेकारणलालहोताहै।जबलोहेकाजलयोजनहोजाताहैतोइसमृदाकारंगपीलाहोताहै।दक्कनपठारकेपूर्वीऔरदक्षिणीभागोंमेंलालमृदापाईजातीहै।उड़ीसा,छत्तीसगढ़,गंगाकेमैदानकेदक्षिणीभागोंमेंतथापश्चिमीघाटकेपिडमॉन्टजोनमेंभीयहमृदापाईजातीहै।
लैटराइटमृदा
जिनक्षेत्रोंमेंउच्चतापमानकेसाथभारीवर्षाहोतीहैवहाँलैटराइटमृदाकानिर्माणहोताहै।भारीवर्षासेनिच्छालनहोताहैऔरजीवाणुमरजातेहैं।इसलिएलैटराइटमृदामेंह्यूमसनगण्ययाशून्यहोताहै।यहमृदामुख्यरूपसेकेरल,कर्णाटक,तमिलनाडु,मध्यप्रदेशऔरउड़ीसातथाअसमकेपहाड़ीक्षेत्रोंमेंपाईजातीहै।खादकेभरपूरप्रयोगसेइसमृदाकोखेतीकेलायकबनायाजासकताहै।
मरुस्थलीमृदा
जिनक्षेत्रोंमेंअल्पवर्षाहोतीहैवहाँमरुस्थलीमृदापाईजातीहै।अधिकतापमानकेकारणइनक्षेत्रोंमेंवाष्पीकरणतेजीसेहोताहै।इस मृदा में लवण की मात्रा अत्यधिक होती है।इसमृदाकोसमुचितउपचारकेबादखेतीकेलायकबनायाजासकताहै।राजस्थान और गुजरात में मरुस्थली मृदा पाई जाती है।
वनमृदा
वन मृदा पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।ऊपरीढ़लानोंपरयहमृदाअत्यधिकअम्लीयहोतीहै,लेकिननिचलेभागोंमेंयहमृदाकाफीउपजाऊहोतीहै।
मृदा अपरदन और संरक्षण
मृदाकेकटावऔरउसकेबहावकीप्रक्रियाकोमृदाअपरदनकहतेहैं।मृदा अपरदन के मुख्य कारण हैं;वनोन्मूलन,सघनकृषि,अतिपशुचारण,भवननिर्माणऔरअन्यमानवक्रियाएँ।मृदा अपरदन से मरुस्थल बनने का खतरा रहता है।
मृदाअपरदनकोरोकनेकेलिएमृदासंरक्षणकीजरूरतहै।इसके लिए कई उपाय किये जा सकते हैं।पेड़ोंकीजड़ेंमृदाकीऊपरीपरतकोबचाएरखतीहैं।इसलियेमृदासंरक्षणमेंवनरोपणकारगरसाबितहोताहै।ढ़ालवालीजगहोंपरसमोच्चजुताईसेमृदाकेअपरदनकोरोकाजासकताहै।पेड़ोंकोलगाकररक्षकमेखलाबनानेसेभीमृदाअपरदनकीरोकथामहोसकतीहै।