असहयोगआंदोलन
महात्मागांधीनेअपनीप्रसिद्धपुस्तकस्वराज(1909)मेंलिखाथाकिभारतमेंअंग्रेजीराजइसलिएस्थापितहोपायाक्योंकिभारतकेलोगोंनेउनकेसाथसहयोगकिया।यदिभारतकेलोगोंकासहयोगनहींमिलतातोअंग्रेजकभीभीयहाँशासननहींकरपाते।महात्मागांधीकाकामाननाथाकिअगरभारतकेलोगसहयोगकरनाबंदकरदें,तोअंग्रेजीराजएकसालकेअंदरचरमराजायेगाऔरस्वराजआजायेगा।गांधीजीकोपूराविश्वासथाकिऐसाहोनेपरअंग्रेजोंकेपासभारतकोछोड़करजानेकेसिवाऔरकोईरास्तानहींबचेगा।
असहयोग आंदोलन के कुछ प्रस्ताव:
- अंग्रेजीसरकारद्वाराप्रदानकीगईउपाधियोंकोवापसकरना।
- सिविलसर्विस,सेना,पुलिस,कोर्ट,लेजिस्लेटिवकाउंसिलऔरस्कूलोंकाबहिष्कार।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
- यदिसरकारअपनीदमनकारीनीतियोंसेबाजनआये,तोसंपूर्णअवज्ञाआंदोलनशुरुकरना।
आंदोलन के विभिन्न स्वरूप
असहयोग——खिलाफतआंदोलनकीशुरुआतजनवरी1921मेंहुईथी।इसआंदोलनमेंसमाजकेविभिन्नवर्गोंकेलोगशामिलथेऔरहरवर्गकीअपनी——अपनीमहत्वाकांक्षाएँथीं।सबनेस्वराजकेआह्वानकासम्मानकियाथा,लेकिनअलग——अलगलोगोंकेलिएइसकेअलग——अलगमायनेथे।
शहरों में आंदोलन:
- शहरोंमेंमध्य——वर्गकेलोगभारीसंख्यामेंअसहयोगआंदोलनमेंशामिलहुए।
- शिक्षकोंनेइस्तीफादेदिया,वकीलोंनेअपनीवकालतछोड़दीऔरहजारोंछात्रोंनेसरकारीस्कूलऔरकॉलेजछोड़दिए।
- मद्रासकोछोड़करअधिकतरराज्योंमेंकाउंसिलकेचुनावोंकाबहिष्कारहुआ।मद्रासकीजस्टिसपार्टीमेंऐसेलोगथेजोब्राह्मणनहींथे।गैर——ब्राह्मणलोगोंकेलिएकाउंसिलकाचुनावएकऐसाजरियाथाजिससेउनकेहाथमेंवहसत्ताआजातीजिसपरकेवलब्राह्मणोंकानिय़ंत्रणथा।
- विदेशीवस्तुओंकाबहिष्कारहुआ,शराबकीदुकानोंकीपिकेटिंगकीगई,औरविदेशीकपड़ोंकीहोलीजलाईगई।इसकाअसरयहहुआकि1921से1922तकविदेशीकपड़ोंकाआयातघटकरआधाहोगया।आयातकामूल्य102करोड़रुपएसेघटकर57करोड़रहगया।विदेशीकपड़ोंकेबहिष्कारकेफलस्वरूपभारतमेंबनेकपड़ोंकीमांगबढ़गई।
आंदोलन में सुस्ती आने के कारण:
- ब्रिटेनमेंबनेमिलमेंबनेकपड़ोंकीतुलनामेंभारतमेंबनीखादीमहँगीपड़तीथी।इसलिए आम लोग खादी को खरीदने में समर्थ नहीं थे।
- अंग्रेजीसंस्थानोंकेबहिष्कारतोहुआलेकिनउसकेबदलेमेंविकल्पकेतौरपरभारतीयसंस्थानोंकीकमीकीसमस्याउत्पन्नहोगई।ऐसे संस्थान बहुत धीरे-धीरे पनप पा रहे थे।शिक्षकऔरछात्रदोबारास्कूलोंमेंजानेलगे,औरवकीलभीअपनेकामपरलौटनेलगे।
- गाँवों में भी असहयोग आंदोलन फैलने लगा।किसान और आदिवासी भी इस आंदोलन में शामिल हो गए।
अवध
अवध में किसान आंदोलन की अगुवाईबाबारामचंद्रनेकी।बाबारामचंद्रएकसन्यासीथेजिन्होंनेपहलेफिजीमेंगिरमिटियामजदूरकेतौरपरकामकियाथा।तालुकदारऔरजमींदारअधिकमालगुजारीकीमांगीकररहेथे।किसानों से बेगारी करवाई जा रही थी।इन सबके विरोध में किसान उठ खडे हुए थे।किसानोंचाहतेथेकिमालगुजारीकमहो,बेगारसमाप्तहोऔरकठोरजमींदारोंकासामाजिकबहिष्कारहो।
जवाहरलालनेहरू1920年नेजूनसेअवधकेगाँवोंकादौराकरनाशुरुकरदिया,ताकिवहकिसानोंकीसमस्यासमझसकें।अक्तूबरमेंनेहरू,बाबारामचंद्रऔरकुछअन्यलोगोंकीअगुआईमेंअवधकिसानसभाकागठनहुआ।इसतरहअपनेआपकोकिसानोंकेआंदोलनसेजोड़कर,कांग्रेसअवधकेआंदोलनकोएकव्यापकअसहयोगआंदोलनकेसाथजोड़नेमेंसफलहोपाईथी।कईजगहोंपरलोगोंनेमहात्मागाँधीकानामलेकरलगानदेनाबंदकरदियाथा।
आदिवासीकिसान
महात्मागाँधीकेस्वराजकाआदिवासीकिसानोंनेअपनेहीढ़ंगसेमतलबनिकालाथा।जंगल से संबंधित नये कानून बने थे।येकानूनआदिवासीकिसानोंकोजंगलमेंपशुचराने,तथावहाँसेफलऔरलकड़ियाँलेनेसेरोकरहेथे।इसप्रकारजंगलकेनयेकानूनकिसानोंकीआजीविकाकेलियेखतराबनचुकेथे।आदिवासीकिसानोंकोसड़कनिर्माणमेंबेगारकरनेकेलियेबाध्यकियाजाताथा।आदिवासीक्षेत्रोंमेंकईविद्रोहीहिंसकभीहोगये।कईबारअंग्रेजीअफसरोंकेखिलाफगुरिल्लायुद्धभीहुए।
अल्लूरी सीताराम राजू:1920年केदशकमेंआंध्रप्रदेशकीगूडेमपहाड़ियोंमेंआदिवासियोंनेउग्रआंदोलनकिया।उनका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू कर रहे थे।राजूकादावाथाकिउनकेपासचमत्कारीशक्तियाँहैं।लोगों को लगता था कि राजू भगवान के अवतार थे।राजूमहात्मागांधीसेबहुतप्रभावितथेऔरलोगोंकोखादीपहननेऔरशराबनपीनेकेलिएप्रेतितकिया।लेकिनउन्हेंलगताथाआजादीकेलिएबलप्रयोगजरूरीथा।राजू को 1924 में फाँसी दे दी गई।
बागानों में स्वराज
चायबागानोंमेंकामकरनेवालेमजदूरोंकीस्थितिखराबथी।इंडियन एमिग्रेशन ऐक्ट1859年केअनुसार,बागानमजदूरोंकोबिनाअनुमतिकेबागानछोड़करजानामनाथा।असहयोगआंदोलनसेप्रभावितहोकरकईमजदूरोंनेअधिकारियोंकीबातमाननेसेइंकारकरदिया।वे बागानों को छोड़कर अपने घरों की तरफ चल पड़े।लेकिनरेलवेऔरस्टीमरकीहड़तालकेकारणवेबीचमेंहीफंसगए,जिससेउन्हेंकईमुसीबतेंझेलनीपड़ीं।पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और बुरी तरह पीटा।
कईविश्लेषकोंकामाननाहैकिकांग्रेसउसआंदोलनकेसहीमतलबकोसहीतरीकेसेसमझानहींपाईथी।लोगोंनेअपने——अपनेतरीकेसेअसहयोगआंदोलनकामतलबनिकालाथा।लोगोंकोलगताथाकिस्वराजकामतलबथाउनकीहरसमस्याकाअंत।लेकिनसमाजकेविभिन्नवर्गोंकेलोगोंनेगाँधीजीकानामजपनाशुरुकरदियाऔरस्वतंत्रभारतकेनारेलगानेशुरुकरदिए।ऐसाकहसकतेहैंकिआमलोगकिसीनकिसीरूपमेंउसविस्तृतआंदोलनसेजुड़नेकीकोशिशकररहेथेजोउनकीसमझसेपरेथे।