7 हिंदी दूर्वा

थोड़ी धरती पाऊँ

सर्वेश्वरदयालसक्सेना

बहुत दिनों से सोच रहा था, थोड़ी धरती पाऊँ
उस धरती में बागबगीचा, जो हो सके लगाऊँ।
खिलें फूल-फल, चिड़ियाँ बोलें, प्यारी खुशवू डोले
ताजी जलाशय में, अपना हर अंग भिगो ले।
लेकिन एक इंच धरती भी कहीं नहीं मिल पाई
एक पेड़ भी नहीं, कहे जो मुझको अपना भाई।

इस कविता के रचयिता सर्वेश्वरदयाल सक्सेना है।कविनेइसकवितामेंपर्यावरणकेलिएजंगलकेमहत्वकेबारेमेंलिखाहै।कविचाहताहैकिउसकेपासजमीनकाएकछोटाटुकड़ाहोजिसपरवहबगीचालगासके।उसकीइच्छाहैकिउसबगीचेमेंफूलखिलें,फललगेंऔरप्यारीखुशबूव्याप्तरहे।कविचाहताहैकिबगीचेकेजलाशयमेंचिड़ियाँआकरस्नानकरेंऔरफिरअपनामधुरसंगीतफैलाएँ।लेकिनकविकोशहरमेंएकइंचभीधरतीनहींमिलपातीहै।उसेएकभीपेड़नहींमिलताहैजोउसेअपनाभाईकहसके।

हो सकता है पास, तुम्हारे अपनी कुछ धरती हो
फूल-फलों से लदे बगीचे और अपनी धरती हो।
हो सकता है छोटी सी क्यारी हो, महक रही हो
छोटी-सी खेती हो जो फसलों में दहक रही हो।
हो सकता है कहीं शांत चौपाए घूम रहे हों
हो सकता है कहीं सहन में पक्षी झूम रहे हों।
तो विनती है यही, कभी मत उस दुनिया को खोना
पेड़ों को मत कटने देना, मत चिड़ियों को रोना।

कविकहताहैकिहोसकताहैपाठकोंमेंसेकिसीकेपासधरतीकाअपनाटुकड़ाहोऔरउसपरफूलऔरफलोंसेलदाबगीचाहो।होसकताहैकिसीकेपासछोटीमोटीखेतीभीहोजिसमेंपकीहुईफसलदमदमदमकरहीहो।होसकताकिसीकेखेतमेंकुछजानवरशांतिसेविचरणकररहेहोंयाफिरकिसीकेबागानमेंपक्षीझूमरहेहों।

कविकहताहैकियदिऐसाहैतोफिरउसदुनियाकोखोनेसेबचानाहोगा।पेड़ोंकोकटनेसेऔरचिड़ियोंकोरोनेसेबचानाहोगा।

एक-एक पत्ती पर हम सब के सपने सोते हैं
शाखें कटने पर वे भोले, शिशुओं सा रोते हैं।
पेड़ों के संग बढ़ना सीखो पेड़ों के संग खिलना
पेड़ों के संग-संग इतराना, पेड़ों के संग हिलना।
बच्चे और पेड़ दुनिया को हरा-भरा रखते हैं
नहीं समझते जो, दुष्कर्मों का वे फल चखते हैं।

एक एक पत्ती पर हम सबके सपने सोते हैं।जबपेड़काटदियेजातेहैंतोहमारेसपनेछोटेबच्चोंकीतरहरोनेलगतेहैं।इसलिएहमेंपेड़ोंकीतरहपनपनाऔरखेलनाकूदनासीखनाहोगा।कविकाकहनाहैकिबच्चेऔरपेड़दुनियाकोहरा——भरारखतेहैं।जिसतरहसेबच्चेनिस्वार्थभावसेसबमेंखुशियाँबाँटतेहैंउसीतरहसेपेड़भीबिनाराग——द्वेषकेसबकोअपनाफलऔरअपनीछायादेताहै।जोइसबातकोनहींसमझपातेउन्हेंअपनेकियेकीसजामिलतीहै।

आज सभ्यता वहशी बन, पेड़ों को काट रही है
जहर फेफड़ों में भरकर हम सबको बाँट रही है।

आज हमारी सभ्यता वहशी हो चुकी है।अपनेलोभकोपूराकरनेकेचक्करमेंहमपेड़ोंकोकाटरहेहैं।जंगलकेकटनेसेवातावरणप्रदूषितहोचुकाजिसकाजहरहमसबकेफेंफड़ोंकोबरबादकररहाहै।

कवितासे

प्रश्न 1: कवि बाग-बगीचा क्यों लगाना चाहता है?

उत्तर:कविचाहताहैकिउसकेआसपासचिड़ियोंकाकलरवसुनाईदेऔरफूलोंकीसुगंधछाईरहे।इसलिए कवि बाग-बगीचा लगाना चाहता है।

प्रश्न 2: कविता में कवि की क्या विनती है?

उत्तर:कवितामेंकविविनतीकरताहैकिहमपेड़ोंकोकाटनाबंदकरें।कविविनतीकरताहैकिहमपेड़ोंकेमहत्वकोसमझेंऔरउनकासम्मानकरनासीखजाएँ।

प्रश्न 3: कवि क्यों कह रहा है कि
“आज सभ्यता वहशी बन पेड़ों को काट रही है।”
इस पर अपने विचार लिखो।

उत्तर:आजविकासकेनामपरपेड़ोंकीअंधाधुंधकटाईहोरहीहै।पेड़काटेजारहेहैंताकिमकान,सड़केंऔरकारखानेबनसकें।यहसबहमअपनेलालचकोशांतकरनेकेलिएकररहेहैं।इससे भविष्य में हमारा ही नुकसान होने वाला है।इसलिएकविकहरहाहैकिआजसभ्यतावहशीबनपेड़ोंकोकाटरहीहै।

प्रश्न 4: कविता की इस पंक्ति पर ध्यान दो:
“बच्चे और पेड़ दुनिया को हरा-भरा रखते हैं।”

अबतुमयहबताओकिपेड़ोंऔरबच्चोंमेंक्याकुछसमानताहै吗?उसे अपने ढ़ंग से लिखो।

उत्तर:बच्चेनिस्वार्थभावसेहरकिसीकोअपनास्नेहबाँटतेहैं।ठीकइसीतरहपेड़भीअपनाफलयाअपनीछायाहरकिसीकोदेताहै।पेड़ों और बच्चों में यही समानता है।



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