रहीम के दोहे
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत॥
रिश्तेदार——नातेदारकईरीतिरिवाजोंकेकारणबनतेहैं।लेकिनसच्चामित्रउसीकोमाननाचाहिएजोविपत्तिकेसमयभीआपकासाथदे।
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़सि छोह॥
मछली और पानी एक साथ रहते हैं।लेकिनजबमछलीजालमेंफँसजातीहैतोपानीउसेछोड़करजालसेनिकलजाताहै।लेकिनउसकेबावजूदमछलीकभीभीजलकामोहनहींछोड़तीहै।बल्किजलकेवियोगमेंमछलीअपनेप्राणत्यागदेतीहै।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति सचहिं सुजान॥
पेड़अपनेफलोंकोनहींखाताहैऔरनहीतालाबअपनापानीपीताहै।ठीकउसीतरहसज्जनलोगहमेशादूसरोंकीभलाईकेलिएसंपत्तिजमाकरतेहैं।
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घबरात।
धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात॥
क्वारकेमहीने(वर्षाऋतुकेबाद)मेंजोबादलआतेहैंवेबिनाकारणहीगरजतेहैं।क्वारकेबादलोंमेंबरसनेकीक्षमतासमाप्तहोचुकीहोतीहै।ऐसालगताहैकिकोईव्यक्तिअपनेपराक्रमीभूतकालकेबारेमेंबातेंकरकेबिनामतलबदूसरोंपररौबजमारहाहो।
धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह।
जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह॥
हमेंपृथ्वीसेसीखनाचाहिएकिकैसेवहजाड़ा,गर्मीऔरबरसातकाडटकरसामनाकरतीहै।हमेंअपनेशरीरकोवैसाहीबनानाचाहिएताकिहमभीहरमौसमकाडटकरसामनाकरसकें।
नोट:इसअध्यायकेबाददियेगयेप्रश्नोंकेउत्तरआपआसानीसेइनदोहोंकेभावार्थोंमेंपासकतेहैं।